Monday 6 April 2020

एक दीया जलाया है

एक दीया जलाया है मैंने,
हिम्मत और विश्वास का,
दूर तक फैले इस तमस में,
प्रेम और सौहार्द का,
एक दीया जलाया है मैंने|

लौ छोटी सी ही है,
डगमगा भी रही है,
इस भीषण आंधी में,
बुझ जाने का डर भी है,
फिर भी दीया जलाया है मैंने|

अंधेरा फ़ण फैला रहा है,
किसी स्याह काली रात सा,
कङकती बिज़लियाँ भी हैं,
डरा हुआ हर इंसान है,
फिर भी दीया जलाया है मैंने।

हथेली के ओट मे छुपाया है,
सरसराती हवाओं से बचाया है,
कमज़ोर है, पर ज़िंदा है,
जैसे किसी नादान बच्चे सी ज़िद है,
हाँ मैंने दीया जलाया है।

बिन मिट्टी के अंकुर सा है,
जिसकी दो पाती खिलखिला रही है,
जैसे झुलसती ज़मीन पर भी मुस्कुरा रही है,
निडर है, आँखों में चमक हैैै,
मैंने फिर एक दीया जलाया है।

ये दीया उस कल पर मेरा भरोसा है,
नये सूरज का एक आगाज़ है,
तूफानों के थमने का एहसास है,
कल फिर रौनक आएगी, फिर सजेंगे मेले
मैंने फिर एक संकल्प का दीया जलाया है|
- शिल्पी

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